Inspiring Story of Transformation
Inspiring Story of Transformation
करूणा को काम करते करते काफी समय हो गया था। वह बस हॉस्पिटल से घर और घर से हॉस्पिटल जाती थी। इसकी दो वजह थीं एक तो उसका कहीं भी मन नहीं लगता था।
उसका हर चीज से मन भर गया था। दूसरा वह यह सोचती थी, कि किसी दिन उसका सामना शोभा से न हो जाये।
शोभा के बारे में उसे बहुत फिक्र रहती थी। वह उससे मिलना चाहती थी। लेकिन एक सवाल जो उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था कि, जब वह शोभा से मिलेगी तो उसका पहला सवाल यही होेगा कि उसने घर क्यों छोड़ा।
ऐसे में अगर उसने करन की सच्चाई शोभा को बताई तो शोभा की गृहस्थी खराब हो जायेगी। वह ऐसा हरगिज नहीं चाहती थी। इसलिये उसका मन कहीं जाने का नहीं करता था।
कुछ दिन बाद शहर के सभी बड़े हॉस्पिटल की एक कॉन्फ्रेंस होनी थी। जिसमें केंसर के प्रति लोगों को कैसे जागरुक किया जाये। इस कॉन्फ्रेंस में करूणा को जाना था। लेकिन करूणा जानती थी, कि शोभा भी वहां आयेगी।
करूणा ने यह बात सुबोध को बताई यह सुनकर सुबोध बोला – ‘‘करूणा वैसे मुझे हक तो नहीं है लेकिन अगर तुम मुझे अपना मानती हों तो एक बार बताओ कि तुम शोभा का सामना क्यों नहीं करना चाहतीं हो? क्या कारण हैं जो तुमने इतने सालों की दोस्ती तोड़ कर वह हॉस्पिटल छोड़ दिया?’’
करूणा जिस सवाल से बचना चाह रही थी वही सवाल आज उसके सामने खड़ा था।
करूणा ने कहा – ‘‘सुबोधा वैसे तो मैं यह बात किसी को बताना नहीं चाहती थी। लेकिन तुमसे मैं कुछ छिपा नहीं सकती इसलिये बता रही हूं लेकिन तुम्हें मुझसे वादा करना होगा कि इस राज को किसी भी हालत में किसी पर भी जाहिर नहीं करोगे।’’
सुबोध ने करूणा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा -‘‘करूणा ये राज मरते दम तक मेरी जुबा पर नहीं आयेगा।’’
करूणा ने अपनी उपर बीती एक-एक बात सुबोध को बता दी। सारी बात वह सर झुका कर बता रही थी। बताते बताते उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। जब उसने सर उठा कर देखा तो सुबोध की आंखे भी नम थीं।
सुबोध बोला – ‘‘करूणा मुझे माफ कर देना मैं नहीं जानता था कि तुम इतना दर्द अपने अंदर लेकर बैठी हों।’’
करूणा ने सुबोध से कहा – ‘‘मैं इस शहर से कहीं दूर जाना चाहती हूं जिससे शोभा कभी भी मुझे ढूंढ न सके।’’
सुबोध ने करूणा से कहा – ‘‘करूणा मैं उस कॉन्फ्रेस में से तुम्हारा नाम हटवाने की कोशिश करता हूं। रही बात कहीं और जाने की, तुम उसकी चिन्ता मत करो। में कोशिश करके तुम्हारी नौकरी के लिये कहीं बात करता हूं। मेरी कई हॉस्पिटल में अच्छी जान पहचान है।’’
कुछ ही दिनों में कॉन्फ्रेस शुरू होने वाली थी। करूणा को बहुत चिन्ता हो रही थी। कि वह शोभा से कैसे मिलेगी। एक दिन सुबोध ने करूणा से कहा – ‘‘करूणा मैंने तुम्हारी क्वालीफिकेशन कम होने की बात बता कर तुम्हारा नाम कॉन्फ्रेंस से हटवा दिया है। मुझे माफ कर देना इसके अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं था।’’
करूणा ने सुबोध का शुक्रिया अदा करते हुए कहा – ‘‘यह तो सच ही कहा तुमने वैसे भी पता नहीं मैं तुम्हारा ऐहसान कैसे उतार पाउंगी। तुमने मुझे बचा लिया।’’
सुबोध बोला – ‘‘करूणा मैंने तुम्हारे लिये कई हॉस्पिटल में बात की है। जिनमें से कहीं न कहीं तुम्हारी नौकरी पक्की हो जायेगी। लेकिन नये शहर में अकेले कैसे रहोंगी।’’
यह सुनकर करूणा कुछ देर चुप बैठी रही फिर बोली – ‘‘सुबोध बहुत से लोगों के सहारे मैं यहां तक पहुंची हूं। लेकिन अब अपने दम पर दुनिया का मुकाबला करना चाहती हूं। जो होगा देखा जायेगा। वहां भी तुम्हारे जेसे अच्छे लोग मिल जायेंगे।’’
यह सुनकर सुबोध हसने लगा। फिर बोला – ‘‘मेरे जैसे क्या। अगर तुम कहो तो मैं ही साथ में चलता हूं।’’
करूणा ने सीरियस होते हुए कहा – ‘‘नहीं मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती। पहले भी एक बार मेरे कारण तुम्हारी नौकरी जा चुकी है। अबकी बार ऐसा हुआ तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाउंगी।’’
सुबोध चुप रह गया।
सुबोध मन ही मन करूणा को चाहने लगा था। लेकिन यह बात वह अपने मुंह से कह नहीं पा रहा था। लेकिन अब जब करूणा नये शहर में जा रही है तो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बात को आगे कैसे बढ़ाये।
इसी तरह कुछ दिन बीत जाते हैं।
एक दिन सुबोध करूणा के घर आता है – ‘‘करूणा तुम्हें परसो एक हॉस्पिटल में जाना है मैंने बात कर ली है। बस तुम मिल आओ। नौकरी तो पक्की है। लेकिन सैलरी इतनी ही मिलेगी।’’
करूण बहुत खुश होती है – ‘‘सुबोध तुमने मेरे लिये जो किया है। वह मैं कभी भूल नहीं सकती। एक एहसान और कर दो मेरे लिये। तुम भी मेरे साथ चलो। वहां सब इंतजाम देख लेना फिर वापस आ जाना।’’
यह सुनकर सुबोध ने कहा – ‘‘ये सब कहने की जरूरत नहीं थी मैं तुम्हें अकेले थोड़े ही भेज रहा था मैं भी साथ चलूंगा। अगर नौकरी पक्की हो गई तो वहीं रहने की जगह ढूंढ लेंगे।’’
यह सुनकर करूणा बहुत खुश हुई लेकिन सुबोध उदास बैठा था। उसे उदास देख कर करूणा ने पूछा – ‘‘अपनी परेशानी में इतना उलझ जाती हूं कि दूसरे के बारे में कुछ सोचती ही नहीं। क्या बात है सुबोध इतने उदास क्यों हो? कोई परेशानी है क्या?’’
सुबोध ने कहा – ‘‘करूणा मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही है। लेकिन अब नहीं कहा तो बहुत देर हो जायेगी।’’
करूणा ने पूछा – ‘‘क्या बात है सुबोध बोलो हमारे बीच में डर कहां से आ गया मैंने अपने बारे में सब कुछ बता दिया है। तुम भी अपने मन में कुछ मत रखो कहो क्या कहना चाहते हो?’’
सुबोध ने डरते डरते कहा – ‘‘करूणा मैं तुमसे प्यार करता हूं। ये बात मैं मन में रखे हुए था, लेकिन जब तुम्हारे जाने का समय आ गया तो अब मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।’’
यह सुनकर करूणा का चेहरा पीला पड़ गया। वह अवाक् होकर सुबोध की शक्ल देख रही थी। उसकी आंखे नम हो गई थीं।
शेष आगे …
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