Change My Life Story
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करूणा बहुत देर तक खामोश बैठी रही। यह देखकर सुबोध ने कहा – ‘‘मुझे माफ कर दो करूणा मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता था। मेरे से गलती हो गई आगे हम दोंनो केवल अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे। बस मुझे एक बार माफ कर दो।’’
करूणा ने कहा – ‘‘नहीं सुबोध ऐसी बात नहीं है। बस जिन्दगी में इतने धोखे खायें हैं कि अब कोई इच्छा बाकी नहीं रह गई। मैंने तो बस मरीजों की सेवा को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया था। जिसके बदले में बस मुझे गुजारे लायक पैसे मिल जायें। लेकिन अचानक तुम्हारी बात सुनकर मैं कुछ सोच समझ नहीं पा रही हूं।’’
सुबोध ने करूणा का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा – ‘‘करूणा मेरी ओर से कोई दबाब नहीं हैं अगर तुम चाहो तो मैं इस बारे में कोई बात नहीं करूगा। तुम भी भूल जाओ हमारे बीच कोई ऐसी बात हुई थी।’’
करूणा ने सुबोध के हाथ को मजबूती से पकड़ कर कहा – ‘‘नहीं सुबोध मुझे कुछ समय दो सोचने के लिये उसके बाद ही मैं कोई फैसला कर पाउंगी। पहले तो मैं हर फैसला शोभा से पूछ कर लेती थी।
लेकिन अब मुझे खुद ही सोचना समझना पड़ेगा। बस एक बात ध्यान रखना मेरा जो भी फैसला हो उसका असर हमारी दोस्ती पर नहीं पड़ना चाहिये।’’
सुबोध ने करूणा से कहा – ‘‘मैं भी यही चाहता हूं। चलो अब मैं चलता हूं। परसो चलने के लिये तैयार रहना।’’
तीसरे दिन दोंनो दूसरे शहर पहुंच जाते हैं। करूणा का इंटरव्यूह चल रहा था। सुबोध बाहर बैठ कर उसका इंतजार कर रहा था।
बहुत देर इंतजार करने के बाद भी करूणा नहीं आई तो सुबोध वहां से निकल कर पास ही में एक टी-स्टॉल पर चाय पीने चला गया।
उसके जाने के बाद करूणा बाहर आई तो देखा सुबोध वहां नहीं था। अन्जान शहर में अपने आप को अकेला पाकर वह घबरा गई। वह गेट पर गई वहां स्क्योरिटी गार्ड से पूछा तो उसने बताया – ‘‘मेडम आपके साथ जो बैठे थे वो तो बाहर चले गये।’’
यह सुनकर करूणा के हाथ पैर फूल गये। वह सोचने लगी लगता है सुबोध को परसों की बात का बुरा लग गया। वह जबाब का इंतजार कर रहा होगा और मैंने कोई जबाब नहीं दिया। उसे लगा होगा कि मेरी नौकरी तो लग ही जायेगी इसलिये वो मुझे छोड़ कर चला गया।
करूणा वहीं पास ही में सोफे पर बैठ गई उसकी आंखे नम हो गई थीं। वह इस पूरी दुनिया में खुद को अकेला महसूस करने लगी। काश उसने सुबोध के प्यार को कबूल कर लिया होता। एक सच्चा दोस्त भी उसने खो दिया। वह सर झुकाये ये सब बातें सोच कर पछता रही थी।
तभी सुबोध उसके सामने आया? क्या हुआ तुम्हारा इंटरव्यूह हो गया? क्या कहा उन्होंने? नौकरी पक्की हो गई या नहीं?
करूणा ने सिर उठा कर सुबोध को देखा। करूणा की आंखों से आंसू बह रहे थे वह उठ कर सुबोध के गले लग गई – ‘‘कहां चले गये थे? पता है मैं कितना डर गई थी। फिर कभी मुझे छोड़ कर मत जाना।’’
करूणा ने कस कर सुबोध को पकड़ लिया। सुबोध को कुछ समझ नहीं आ रहा था। हॉस्पिटल में आने जाने वाले दोंनो को देख रहे थे। कुछ देर में करूणा को समझ आया कि उन्हें सब देख रहे हैं। वह सुबोध से अलग हो गई।
सुबोध बोला – ‘‘मैं तो यहीं बगल की दुकान पर चाय पीने गया था।’’
यह सुनकर करूणा बोली – ‘‘मुझे माफ कर दो मैं समझी तुम परसों की बात का बुरा मान गये और मुझे यहां छोड़ कर वापस चले गये।’’
सुबोध यह सुनकर हसने लगा – ‘‘करूणा मैंने कहा था, हमारी दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूगा। बिल्कुल चिन्ता मत करो। चलो अब बताओ क्या हुआ?’’
करूणा ने कहा – ‘‘नौकरी मिल गई एक सप्ताह बाद ज्वाइन करना है।’’
सुबोध हसते हुए बोला – ‘‘मुझे तो पहले ही पता था। नौकरी तुम्हें मिल कर रहेगी। चलो अब कहीं खाना खाते हैं तुम्हें भी भूख लग रही होगी।’’
दोंनो एक रेस्टोरेन्ट में पहुंच जाते हैं। ज्यादा भीड़ नहीं थी। सुबोध ने खाना ऑडर किया।
करूणा खाना खा रही थी। फिर उसने सुबोध से कहा – ‘‘सुबोध मैंने बहुत सोचा। शादी के बारे में लेकिन हर बार पहले से ज्यादा उलझ जाती हूं।’’
सुबोध बोला – ‘‘तुम उस बारे में ज्यादा मत सोचो, वक्त अपने आप फैसला करने की हिम्मत देगा। फिलहाल नौकरी पर ध्यान दो।’’
करूणा ने सुबोध का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा – ‘‘नहीं सुबोध जब आज तुम्हें कुछ देर के लिये खो दिया तो मुझे मेरा जबाब मिल गया। मैं तुमसे शादी करने के लिये तैयार हूं।’’
यह सुनकर सुबोध बहुत खुश हुआ। दोंनो ने खुशी खुशी खाना खाया फिर दोंनो बस पकड़ने के लिये बस स्टेंड पहुंच गये।
बस में बैठे बैठे। करूणा ने सुबोध से पूछा – ‘‘सुबोध तुम तो मेरी पिछली जिन्दगी के बारे में सब कुछ जानते हो। लेकिन मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती।’’
सुबोध ने करूणा का हाथ, हाथ में लेते हुए कहा – ‘‘करूणा मेरी जिन्दगी में बताने जैसा कुछ भी नहीं है। गांव में मेरे माता पिता थे। जो कि अब जिन्दा नहीं हैं।
जब वे थे मैं गांव में ही एक दवाखाने में कम्पाउंडर का काम करता था। उनके जाने के बाद मेरा मन गांव से हट गया। इसलिये यहां चला आया तब से यहां नौकरी कर रहा हूं। मेरा कोई नहीं है। बस अब घर बसाने का मन है।’’
करूणा बोली – ‘‘मैं समझ सकती हूं। अगर तुम्हारे माता पिता होते तो अभी तक तुम्हारा घर बस गया होता। माता पिता के जाने का दुःख मैं जानती हूं। जब मेरे माता-पिता चले गये, तो मैं बहुत टूट गई थी। उस समय अगर शोभा नहीं होती तो न जाने मेरा क्या होता?’’
दोंनो ऐसे ही बातें करते करते घर पहुंच गये। करूणा को घर छोड़ कर सुबोध अपने घर चला गया।
करूणा बहुत थक गई थी। लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी। आज जिन्दगी का सबसे बड़ा फैसला उसने लिया था। काश आज शोभा उसके साथ होती। लेकिन फिर उसने सोचा। किसी का भी साथ हमेशा नहीं रहता। क्या पता यही सब किस्मत में लिखा हो। आगे की जिन्दगी सुबोध के सहारे ही कटनी थी।
सब कुछ किस्मत पर छोड़ कर। भविष्य के सपने देखते-देखते कब करूणा की आंख लग गई उसे पता भी नहीं लगा।
शेष आगे …
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