New Life Begining Story
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करूणा हॉस्पिटल में अपने काम में लग जाती है। काम तो वह पहले से ही जानती थी। सुबोध ने पूरे स्टॉफ से करूणा को मिलवा दिया। करूणा के बारे में जानकर सभी उसकी मदद करने के लिये तैयार हो गये।
करूणा अपने काम में लग गई।
दूसरी ओर जब शोभा को पता लगा कि उसका बच्चा नहीं रहा तो, वह बेहोश हो गई बहुत मुश्किल से उसे होश में लाया गया होश में आने के बाद वह रोने लगी
शोभा ने नर्स से पूछा – ‘‘जरा करूणा को भेज देना वह दिखाई नहीं दी।’’
नर्स ने बोला – ‘‘जी वो तो आज हॉस्पिटल आई ही नहीं।’’
यह सुनकर शोभा को कुछ समझ नहीं आया। इतनी बड़ी बात हो गई और करूणा का कुछ अता पता नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है? इस मुसीबत में मुझे अकेला छोड़ कर वह कहां जा सकती है?
शोभा ने तुरन्त करन को फोन किया – ‘‘करन, करूणा कहां है?’’
शोभा की बात सुनकर करन घबरा गया लेकिन अपने आप को संभालते हुए बोला – ‘‘शोभा करूणा घर पर होगी तुम चिन्ता मत करो, तुम बस आराम करो। मैं देखता हूं।’’
शोभा को किसी तरह टाल कर करन ने फिलहाल चैन की सांस ली।
शोभा अपने बच्चे के बारे में सोच कर बहुत परेशान हो रही थी। करन उसके पास बैठा था। वह करन से लिपट कर रो रही थी और बार बार करूणा के बारे में पूछ रही थी।
लेकिन करन के पास इस सबका कोई जबाब नहीं था। शाम होने को आई थी। शोभा को पता था कि करूणा उसके लिये खाना बना कर लायेगी। हर दिन वह उसे अपने हाथों से खाना खिलाती थी। लेकिन रात तक इंतजार करने के बाद भी करूणा नहीं आई, तो शोभा को कुछ शक हुआ।
शोभा ने वार्ड बाय को घर भेजा करूणा को बुलाने के लिये। लेकिन उसने आकर बताया कि घर पर तो ताला लगा हुआ है।
शोभा ने उसी वार्ड बाय से करन को बुलाने के लिये कहा। करन के आने पर शोभा ने उससे पूछा – ‘‘तुमने तो कहा था करूणा घर पर है। लेकिन वहां तो ताला लगा हुआ है।’’
करन ने सफाई देते हुए कहा – ‘‘हां शोभा मैं दोपहर को घर गया था करूणा को देखने लेकिन वहां के चौकीदार ने बताया कि करूणा कहीं चली गई है और चाबी उसे दे गई है।’’
करन ने बहुत सफाई से झूठ बोल दिया।
करन बोला – ‘‘तुम चिन्ता मत करो मैं पता करवाता हूं कि वह कहां गई?’’
शोभा बहुत परेशान और दुःखी थी। एक तो उसके साथ इतना बड़ा हादसा हो गया और उसकी सहेली का कुछ पता नहीं चल रहा।
वह रात भर सोचती रही। सुबह वह हॉस्पिटल से करन के साथ घर आ गई। घर में सब कुछ वैसे ही पड़ा था। वह करूणा के कमरे में गई वहां उसने देखा कि करूणा का सामान नहीं था। सूटकेश से लेकर कपड़े तक सब गायब थे। इसका मतलब करूणा घर छोड़ कर चली गई।
शोभा ने करन से पूछा – ‘‘करन सच सच बताओ मेरे जाने के बाद इस घर में क्या हुआ था।’’
यह सुनकर करन सकपका गया। लेकिन उसने झूठ बोला – ‘‘शोभा मैं तो हॉस्पिटल में था। मुझे कुछ नहीं पता कि क्या हुआ? तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है?’’
शोभा सिर पकड़ कर वहीं बेड पर बैठ गई। न जाने करूणा किस हाल में होगी। कहीं जाना था तो मुझे बता कर तो जाती। उसे करूणा पर तरस भी आ रहा था और गुस्सा भी।
इधर करूणा जब शाम को अपने फ्लेट पर पहुंची तो वह बहुत थक चुकी थी। उसका खाना बनाने का मन नहीं था। शोभा के घर में इतना काम करती रहती थी। फिर भी वह कभी नहीं थकती थी। शायद अकेलापन और उदासी के कारण वह बहुत कमजोर और थकी हुई महसूस कर रही थी।
करूणा के पास कोई काम नहीं था। वह बस ऐसे ही बॉलकनी पर खड़ी हो गई।
पुराने दिनों की यादों ने उसे फिर से सताना शुरू कर दिया। उसके माता पिता का चले जाना। उसके बाद शादी। उसके बाद शोभा के घर में रहना और आज यहां अकेले रहना। पता नहीं आगे क्या होगा।
तभी फोन की घंटी बजी।
करूणा ने देखा सुबोध का फोन था। करूणा ने फोन उठाया – ‘‘करूणा गेट खोलो मैं बाहर खड़ा हूं। लगता है तुमने घंटी नहीं सुनी।’’
यह सुनकर करूणा ने गेट खोला और बोली – ‘‘माफ करना बॉलकनी में थी घंटी का पता ही नहीं लगा।’’
सुबोध अन्दर आते हुए बोला – ‘‘खाना तो तुमने बनाया नहीं होगा मुझे पता था। इसलिये मैं खाना लाया हूं चलो मिल कर खाते हैं। वैसे तुम्हें मेरे आने से कोई परेशानी तो नहीं है।’’
करूणा बोली – ‘‘नहीं सुबोध ऐसा कुछ नहीं है और तुम बेकार में परेशान हुए। मैं कुछ न कुछ बना लेती।’’
सुबोध हसते हुए बोला – ‘‘तुम्हारा हाल भी मेरे जैसा है। मैं भी अकेले रहता हूं तो कभी बाहर से थोड़ा बहुत कुछ खा लेता हूं। कभी बहुत मन करता है तभी खाना पकाता हूं। मुझे पता था तुमने भी नहीं पकाया होगा। क्योंकि अकेले मन ही नहीं करता।’’
सुबोध ने खाना टेबल पर रखा। करूणा ने खाना परोस दिया और दोंनो खाने लगे।
खाना खाने के बाद सुबोध ने कहा – ‘‘करूणा परसों तुम्हारी और मेरी दोंनो की ड्यूटी नहीं है। एक काम करते हैं दोंनो मार्किट चलते हैं। जो कुछ भी जरूरी सामान हो खरीद लेंगे, कल तुम अपने जरूरत के सामान की लिस्ट बना लेना।’’
करूणा ने हां में सिर हिलाया। कुछ देर बातें करने के बाद सुबोध अपने घर चला गया।
करूणा को एहसास हुआ कि सुबोध कितना अच्छा इन्सान है। मेरी वजह से इसकी नौकरी चली गई फिर भी यह मेरी कितनी मदद कर रहा है।
लेकिन अब किसी पर विश्वास करना उसके लिये असंभव हो चुका था। उसे हर आदमी में एक जानवर नजर आता था।
इसी तरह समय बीतने लगा। सुबोध समय समय पर करूणा की मदद करता रहता था। करूणा भी अब अपनी पिछली जिन्दगी भूल कर आगे बढ़ चुकी थी। वह सुबोध से बेझिझक किसी भी काम के लिये बोल देती थी और सुबोध उसके बताये हुए काम को बहुत अच्छे से करता था।
करूणा धीरे धीरे यह भी भूल गई थी, कि शोभा भी इसी शहर में रह रही है।
शेष आगे …
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