Dharmik Moral Kahani
Dharmik Moral Kahani
आज कई महीनों की कोशिश के बाद शारदा अपने पति को मथुरा-वृन्दावन ले जाने के लिये तैयार कर पाई थी।
आदित्य को ऑफिस से छुट्टी ही नहीं मिलती थी। बहुत कोशिश करके छुट्टी मिली भी थी लेकिन जाने से एक दिन पहले रात के दो बजे तक लेपटॉप पर काम करते रहे। सुबह सुबह जल्दी उठ कर भी मेल करने बैठ गये।
शारदा सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गई। उसने आपनी छोटी सी बेटी स्नेहा को भी तैयार कर लिया। फिर आदित्य के पास आई।
शारदा: आप अभी तक काम में ही लगें हैं कब तैयार होंगे कम स्टेशन पहुंचेंगे। ट्रेन छूट जायेगी।
आदित्य ने घड़ी देखी साढ़े चार बजे थे।
आदित्य: अरे अभी तो बहुत टाईम है। नई दिल्ली स्टेशन पहुंचने में आधा घंटा ही लगेगा। चिंता मत करो।
पूरी रात में आदित्य केवल दो घंटे ही सो पाया था। जल्दी से मेल करके नहाने चला गया। जल्दी से तैयार हो गया देखा तो घड़ी में साढ़े पांच बज चुके थे।
आदित्य: शारदा मैं कैब बुक कर रहा हूं तुम दोंनो जल्दी से नीचे आ जाओ।
तीनों कैब से नई दिल्ली स्टेशन पहुंचे लेकिन सुबह सुबह इतनी भीड़ थी, कि कैब ने दो किलोमीटर पहले ही उतार दिया। जाम लग रहा था। वहां से बैग लेकर स्टेशन पहुंचे तो देखा ट्रेन छूट गई।
यह देख कर शारदा को गुस्सा आ गया।
शारदा: क्या फायदा हुआ। छुट्टी ली फिर भी ऑफिस का काम करते रहे। कहीं जाना हो तो ऑफिस वाले पीछा ही नहीं छोड़ते। एक काम करो मुझे घर छोड़ दो और ऑफिस चले जाओ।
आदित्य: ओहो गुस्सा मत हो नेक काम के लिये जा रहे हैं। ये सब परेशानियां आती रहती हैं।
एक काम करते हैं। बस से चलते हैं।
तीनों कैब से बस अड्डे पहुंच जाते हैं। वहां मथुरा के लिये यू.पी. रोडवेज की एक बस में चढ़ जाते हैं। सीट तो मिल जाती है। लेकिन बस की कंडीशन इतनी खराब थी, कि लग रहा था। पता नहीं कैसे मथुरा पहुंचेगी।
तीनों बस में बैठ गये करीब एक घंटे इंतजार करने के बाद बस भर गई और चल दी।
बस की स्पीड से ऐसा लग रहा था। जैसे शाम तक मथुरा पहुंचा देगी।
आदित्य: कंडेक्टर साहब कब तक पहुंचेगे मथुरा।
कंडेक्टर: साढ़े तीन घंटे लगेंगे।
तीनों बैठे बैठे परेशान हो रहे थे।
शारदा: थोड़ा सा काम छोड़ देते तो ट्रेन पकड़ कर अब तक पहुंच जाते। डबल किराया भी लग गया और गर्मी में परेशान हो रहे हैं वो अलग से।
आदित्य: अब बस भी करो। किसी तरह पहुंच जायें बस। मन्दिर में दर्शन करने जा रही हों शांत मन से चलो।
बस को चले अभी केवल एक घंटा ही हुआ था। कि मैन हाईवे से गाड़ी एक ओर मुड़ गई। देखा तो सामने एक ढाबा था। ढाबे पर बस रुकने से और लेट हो जायेंगे।
लेकिन कर भी क्या सकते थे। तीनों नीचे उतर कर सामने पड़ी मेज कुर्सी को देख कर उस पर बैठ गये।
तभी एक छोटी सी बच्ची। पसीने में लथपथ उनके पास आई
बच्ची: साहब लस्सी पी लीजिये दस रुपये गिलास।
आदित्य ने ध्यान से बच्ची को देखा उसने एक स्टेंड पकड़ा था। उसमें चार गिलास लस्सी के थे। वह बच्ची फटे पुराने कपड़े पहने थी। पसीना उसके चहरे को भिगो रहा था।
आदित्य: ठीक है बेटा तीन गिलास मेज पर रख दो।
शारदा: अरे तीन नहीं बस दो ही गिलास ले लो स्नेहा लस्सी नहीं पीती।
आदित्य: बेटा तुम तीन गिलास रख दो।
बच्ची ने तीन गिलास मेज पर रख दिया। आदित्य ने उसे तीस रुपये दे दिये।
पैसे लेकर वह बच्ची चल दी। आदित्य ने उसे रोका।
आदित्य: रुको बेटी ये एक गिलास तुम्हारा है। बहुत गर्मी है। तुम लस्सी पी लो।
बच्ची: नहीं साहब मैं नहीं पी सकती। मैं ऐसा करती हूं आपके दस रुपये वापस कर देती हूं।
आदित्य: नहीं पैसों की जरूरत नहीं तुम पी लो। तुम्हारे मालिक को तो पैसों से मतलब है न।
बच्ची: नहीं साहब अगर उसने मुझे यहां खाली खड़े देख लिया तो बहुत मारेगा। जब भी बस आती है। हमें भाग भाग कर लस्सी बेचनी पड़ती है।
आदित्य: कुछ नहीं होगा मैं उससे बात कर लूंगा।
शारदा: रहने दो न क्यों उसके पीछे पड़े हो? हमें इससे क्या मतलब?
आदित्य: ध्यान से देखो ये हमारी स्नेहा से एक या दो साल बड़ी होगी। लेकिन किस्मत कि इस उम्र में इतनी मेहनत कर रही है।
बच्ची चुपचाप जल्दी जल्दी लस्सी पीने लगी आधा गिलास पीकर उसने कहा –
बच्ची: साहब मेरा छोटा भाई वहां पेड़ के नीचे बैठा है। आप कहें तो ये लस्सी मैं उसे पिला दूं।
आदित्य: तुम ये लस्सी पी लो और ये चौथा गिलास उसे दे आना मैं इसके भी पैसे दे दूंगा।
बच्ची ने जल्दी से लस्सी खत्म की और एक गिलास दूर पेड़ के नीचे बैठे अपने छोटे भाई को दे आई।
तभी ढाबे का मालिक बाहर आ गया।
मालिक: क्यों काम के टाईम पर इधर उधर घूम रही है। सारी लस्सी खराब हो रही है। तेरा बाप बेचेगा उसे।
आदित्य: इसे मैंने रोका था। तरस खा छोटी बच्ची पर इतनी गर्मी में काम कर रही है।
मालिक: साहब आप जाओ यह हमारा रोज का काम है। इसका भाई भी नखरे करता था। मैंने हाथ पैर तोड़ दिये अब बैठ कर भीख मांगता है।
आदित्य को बहुत गुस्सा आया लेकिन वह पत्नी और बच्ची के कारण चुप रह गया।
बच्ची: मालिक गुस्सा मत करो मैं अभी लस्सी बेच देती हूं। दोंनो चले गये।
आदित्य ने फोन पर किसी से बात की कुछ ही देर में उस इलाके के पुलिस इंस्पेक्टर चार पुलिसवालों के साथ वहां आ गये।
बच्चों से काम करवाने के कारण ढाबे के मालिक को गिरफ्तार कर लिया।
बच्ची: साहब ये क्या किया आपने हमारी रोजी रोटी ही छीन ली। अब तो लगता है हम भूखे मर जायेंगे।
शारदा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कि ये सब क्या हो रहा है।
आदित्य ने बच्ची और उसके भाई को अपने साथ बस में चढ़ा लिया।
तीन घंटे बाद बस मथुरा पहुंच गई।
मथुरा पहुंच कर आदित्य ने पता किया। एक अनाथ आश्रम में बच्ची और उसके भाई को जगह मिल गई। जहां दोंनो पढ़ भी सकेंगे और रहना खाना सब आश्रम की ओर से होगा।
वहां जाते ही आश्रम की ओर से दोंनो को नये कपड़े मिल गये।
वहां से निकलते समय बच्ची ने आदित्य के पैर पकड़ लिये।
बच्ची: साहब आपका बहुत शुक्रिया। वहां बहुत मार पड़ती थी।
आदित्य: बेटा यहां मन लगा कर पढ़ना। वैसे मैं तुम दोंनो से मिलने आता रहूंगा।
वहां से बाहर निकले तो शारदा ने कहा –
शारदा: अब तो सारे मन्दिर भी बंद हो गये। शाम को ही खुलेंगे। फिर घर वापस जाने में बहुत देर हो जायेगी। आना ही बेकार हो गया। बिना दर्शन करे जाना पड़ेगा।
आदित्य: तुम्हें कुछ समझ नहीं आया। भगवान के आदेश से हमें ये पुण्य काम करना था। इसीलिये ट्रेन छूटी। इतने कष्ट उठाये।
शारदा: हां ये तो मैंने सोचा ही नहीं। ठाकुर जी किस रूप में सेवा का मौका दें। ये कोई नहीं जान सकता।
आदित्य: चलो कुछ खा लेते हैं और दिल्ली की बस भी तो पकड़नी है।
तीनों वापस दिल्ली की ओर निकल जाते हैं।
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