Moral Story in Series
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करूणा क्या कर रही है। मां की आवाज सुनकर करूणा एकदम चौक गई। करूणा जल्दी से घर के अंदर आई और बोली – ‘‘मां कुछ नहीं बस खेल रही थी क्या हुआ?’’
करूणा की मां खाना बना रही थी – ‘‘मैं तो तुझे खाने के लिये बुला रही थी।’’
करूणा खाना खाकर अपनी मां से बोली – ‘‘मां मैं शोभा के घर खेलने जा रही हूं।’’
रामवती – ‘‘अरे रुक क्यों जाती है उनके घर वे बड़े लोग हैं कहीं बुरा न मान जायें।’’ इस बात को सुनकर करूणा बहुत जोर से हसी – ‘‘मां तुम कैसी बात करती हों, मेरी सबसे अच्छी सहेली है, अभी जाने दो न मां थोड़ी देर में आ जाउंगी’’ यह सुनकर रमवती का मन पिघल गया – ‘‘जा चली जा लेकिन अपने बापू के आने से पहले आ जाना’’
करूणा और शोभा दोंनो पक्की सहेली थीं। लेकिन दोंनो की किस्मत अलग अलग थी। एक तरफ करूणा बहुत गरीब घर से थी, तो शोभा गांव के जमींदार की बेटी थी। जिसके घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी।
दोंनो सहेली एक ही स्कूल में पढ़ती थीं। एक दिन शोभा स्कूल आई और करूणा से बोली – ‘‘करूणा मेरे माता पिता मुझे शहर भेज रहे हैं पढ़ने के लिये तू मुझे भूल तो नहीं जायेगी।’’
यह सुनकर करूणा बहुत उदास होने लगी – ‘‘शोभा मत जा न, कोई बहाना बना दे।’’ शोभा की आंखों से आंसू छलक रहे थे – ‘‘काश ये मेरे वश में होता, लेकिन वादा कर तू मुझे भूलेगी नहीं और जब भी मैं छुट्ट्यिों में गांव आउंगी तो मुझसे मिलने जरूर आयेगी।’’
शोभा को उसके माता पिता शहर पढ़ने के लिये भेज देते हैं।
करूणा वहीं गांव के स्कूल में पढ़ती रहती है। धीरे धीरे दोंनो बड़ी होने लगती हैं। करूणा की पढ़ाई गांव से होने के कारण ज्यादा नहीं पढ़ पाती इधर शोभा डॉक्टर बन जाती है।
एक दिन शोभा अपनी मां से मिलने गांव आती है। मां से मिल कर वह जब जाने लगती है
शोभा शहर से अपनी सहेली के लिये बहुत से उपहार लाई थी। वह भागती हुई जाने लगती है तभी उसकी मां टोकती है – ‘‘बेटा वो लोग बहुत बुरे हालात में हैं उसके पिता का स्वर्गवास हो चुका है, मां भी बहुत बीमार रहती है। मुझे लगता है उसका रिश्ता पक्का हो गया है।
शोभा, करूणा से मिलने पहुंच जाती है। दरवाजा खटखटाने पर करूणा दरवाजा खोलती है। शोभा उसे देख कर गहरी सोच में पड़ जाती है, एक बार तो उसे ऐसा लगता है कि यह कोई और है। लेकिन जब ध्यान से देखती है तो करूणा ही थी। गालों में गहरे गढ्ढे पड़ गये थे। रंग भी सांवला सा हो गया था।
इधर करूणा भी एक बार शोभा को देख कर हैरान रह गई। शहर जाकर उसके तो रंग ढंग बदल गये। एक दम अप्सरा सी लग रही थी। करूणा एकटक उसे देखे जा रही थी। उसे देख कर शोभा ने कहा – ‘‘अन्दर आने के लिये कहेगी या यहीं खड़ा रखेगी।’’ करूणा जैसे नींद से जागी – ‘‘हां हां अन्दर आ न। तुझे देखा तो अपनी सुध बुध भूल गई, कैसी है तू?’’ एक साथ सवालों की बौछार सी कर दी। करूणा ने।
शोभा ने अन्दर आकर देखा एक टूटी सी खाट पर उसकी मां पड़ी थी पास ही कुछ दवाईयां रखी थीं। शोभा को देख कर रामवती ने उठने की कोशिश की तभी शोभा ने टोका – ‘‘अरे चाची क्यों परेशान हो रही हों लेटी रहो, मैं शोभा हूं। करूणा से मिलने आई थी आपकी तबियत कैसी है? क्या हुआ आपको?’’
तभी करूणा पानी ले आई – ‘‘कुछ नहीं बस कमजोरी है थोड़ा खायेंगी पियेंगी ठीक हो जायेंगी, तू सुना कब आई? शोभा बोली – ‘‘आज ही आई हूं और कल ही वापस जाना है, थोड़ा सा टाईम था सोचा तुझसे मिल आउं। मैंने सुना है तेरा रिश्ता पक्का हो गया है।’’ यह सुनकर करूणा थोड़ा उदास हो गई। तभी रामवती ने बताया -‘‘बेटी पास ही के गांव में एक लड़का है घर में उसकी मां और छोटा भाई है। शरीफ लड़का है शहर में नौकरी करता है। रोज बाईक से शहर जाता है शाम तक लौट आता है, उम्र थोड़ी ज्यादा है।’’
रमावती ने आगे बताते हुए कहा – ‘‘बेटी इसके पिता चल बसे, मेरा भी कोई भरोसा नहीं है, मैं चाहती हूं कि इसके हाथ पीले हो जायें तो सब चिन्ता मिट जाये। लेकिन इससे पूछो तो कहती है तुम अकेली हो जाओंगी, मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगी। अब तू ही इसे समझा।’’
शोभा करूणा को बाहर ले जाती है – ‘‘क्या बात है करूणा तुझे लड़का पसंद नहीं है। करूणा उसके गले लग कर रोने लगी – ‘‘नहीं मैंने लड़का नहीं देखा वो तो ताउजी रिश्ता पक्का कर आये, वो बात नहीं है। मां को अकेला कैसे छोड़ दूं’’
शोभा ने उसकी बात समझते हुए कहा – ‘‘वो बात तो तेरी ठीक है लेकिन शादी तो करनी पड़ेगी, ये सोच मां को कुछ हो गया तो तेरी शादी कैसे होगी और अगर एक बार तेरी शादी हो गई और तेरा पति अच्छा निकल गया तो तू उसके साथ कभी भी अपनी मां से मिलने आ सकती है। वैसे भी भी चाची कुछ दिनों में ठीक हो जायेंगी।’’
करूणा – ‘‘नहीं वो अब ठीक नहीं होंगी डॉक्टर जबाब दे चुके हैं। कैंसर है आखिरी स्टेज का उन्हें कुछ बताया नहीं है, तू भी मत बताना।’’ यह सुनकर शोभा ने कहा – ‘‘फिर तो इसे अपनी मां की अंतिम इच्छा मान कर पूरा कर शादी कर ले हो सकता है तेरी मां जो इतना कष्ट पा रहीं हैं तेरे हाथ पीले करने के चक्कर में ही उनके प्राण अटके हों।’’
यह सुनकर करूणा रोने लगी। शोभा ने उसे गले से लगा लिया। उसके बाद बात बदलते हुए उसने कहा – ‘‘देख मैं तेरे लिये शहर से क्या लाई हूं।’’ यह कहकर उसने एक सुन्दर सी साड़ी करूणा को दे दी। करूणा ने साड़ी देखी और बोली – ‘‘इसकी क्या जरूरत थी।’’
शोभा ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा – ‘‘करूणा एक बात याद रखना हमेशा मैं कहीं भी रहूं गांव में, शहर में, शादी के बाद अपने ससुराल में, तेरी मेरी दोस्ती नहीं टूटनी चाहिये। जरा सी भी परेशानी मत उठाना जीवन के किसी भी मोड़ पर खुद को अकेला पाये तो सीधी मेरे पास चली आना तेरी ये सहेली हमेशा तेरे साथ खड़ी है।’’
करूणा कुछ बोल न सकी उसकी आंखों से टप टप आंसू बह रहे थे। माहौल को हल्का करने के लिये शोभा ने कहा – ‘‘अब चाय भी पिलायेगी या यू ही टरका देगी। चाय पिला दे भई अगली बार आई तो पता लगा मेरी सहेली अपनी ससुराल पहुंच गई। वैसे हम भी कुछ कम नहीं है। वहीं जाकर तुझे पकड़ लेंगे।’’
करूणा हसते हुए चाय बनाने चल दी …
शेष आगे …
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